Friday, June 4, 2010

पुरुषोत्तम मास- शुक्लपक्ष -पद्मिनी एकादशी

अर्जुन ने कहा: हे भगवन् ! अब आप अधिक (लौंद/ मल/ पुरुषोत्तम) मास की शुक्लपक्ष की एकादशी के विषय में बतायें, उसका नाम क्या है तथा व्रत की विधि क्या है? इसमें किस देवता की पूजा की जाती है और इसके व्रत से क्या फल मिलता है?

श्रीकृष्ण बोले : हे पार्थ ! अधिक मास की एकादशी अनेक पुण्यों को देनेवाली है, उसका नाम ‘पद्मिनी’ है । इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को जाता है । यह अनेक पापों को नष्ट करनेवाली तथा मुक्ति और भक्ति प्रदान करनेवाली है । इसके फल व गुणों को ध्यानपूर्वक सुनो: दशमी के दिन व्रत शुरु करना चाहिए । एकादशी के दिन प्रात: नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पुण्य क्षेत्र में स्नान करने चले जाना चाहिए । उस समय गोबर, मृत्तिका, तिल, कुश तथा आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए । स्नान करने से पहले शरीर में मिट्टी लगाते हुए उसीसे प्रार्थना करनी चाहिए: ‘हे मृत्तिके ! मैं तुमको नमस्कार करता हूँ । तुम्हारे स्पर्श से मेरा शरीर पवित्र हो । समस्त औषधियों से पैदा हुई और पृथ्वी को पवित्र करनेवाली, तुम मुझे शुद्ध करो । ब्रह्मा के थूक से पैदा होनेवाली ! तुम मेरे शरीर को छूकर मुझे पवित्र करो । हे शंख चक्र गदाधारी देवों के देव ! जगन्नाथ ! आप मुझे स्नान के लिए आज्ञा दीजिये ।’

इसके उपरान्त वरुण मंत्र को जपकर पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी तालाब में स्नान करना चाहिए । स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ और सुन्दर वस्त्र धारण करके संध्या, तर्पण करके मंदिर में जाकर भगवान की धूप, दीप, नैवेघ, पुष्प, केसर आदि से पूजा करनी चाहिए । उसके उपरान्त भगवान के सम्मुख नृत्य गान आदि करें ।

भक्तजनों के साथ भगवान के सामने पुराण की कथा सुननी चाहिए । अधिक मास की शुक्लपक्ष की ‘पद्मिनी एकादशी’ का व्रत निर्जल करना चाहिए । यदि मनुष्य में निर्जल रहने की शक्ति न हो तो उसे जल पान या अल्पाहार से व्रत करना चाहिए । रात्रि में जागरण करके नाच और गान करके भगवान का स्मरण करते रहना चाहिए । प्रति पहर मनुष्य को भगवान या महादेवजी की पूजा करनी चाहिए ।

पहले पहर में भगवान को नारियल, दूसरे में बिल्वफल, तीसरे में सीताफल और चौथे में सुपारी, नारंगी अर्पण करना चाहिए । इससे पहले पहर में अग्नि होम का, दूसरे में वाजपेय यज्ञ का, तीसरे में अश्वमेघ यज्ञ का और चौथे में राजसूय यज्ञ का फल मिलता है । इस व्रत से बढ़कर संसार में कोई यज्ञ, तप, दान या पुण्य नहीं है । एकादशी का व्रत करनेवाले मनुष्य को समस्त तीर्थों और यज्ञों का फल मिल जाता है ।

इस तरह से सूर्योदय तक जागरण करना चाहिए और स्नान करके ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए । इस प्रकार जो मनुष्य विधिपूर्वक भगवान की पूजा तथा व्रत करते हैं, उनका जन्म सफल होता है और वे इस लोक में अनेक सुखों को भोगकर अन्त में भगवान विष्णु के परम धाम को जाते हैं । हे पार्थ ! मैंने तुम्हें एकादशी के व्रत का पूरा विधान बता दिया ।

अब जो ‘पद्मिनी एकादशी’ का भक्तिपूर्वक व्रत कर चुके हैं, उनकी कथा कहता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो । यह सुन्दर कथा पुलस्त्यजी ने नारदजी से कही थी : एक समय कार्तवीर्य ने रावण को अपने बंदीगृह में बंद कर लिया । उसे मुनि पुलस्त्यजी ने कार्तवीर्य से विनय करके छुड़ाया । इस घटना को सुनकर नारदजी ने पुलस्त्यजी से पूछा : ‘हे महाराज ! उस मायावी रावण को, जिसने समस्त देवताओं सहित इन्द्र को जीत लिया, कार्तवीर्य ने किस प्रकार जीता, सो आप मुझे समझाइये ।’

इस पर पुलस्त्यजी बोले : ‘हे नारदजी ! पहले कृतवीर्य नामक एक राजा राज्य करता था । उस राजा को सौ स्त्रियाँ थीं, उसमें से किसीको भी राज्यभार सँभालनेवाला योग्य पुत्र नहीं था । तब राजा ने आदरपूर्वक पण्डितों को बुलवाया और पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ किये, परन्तु सब असफल रहे । जिस प्रकार दु:खी मनुष्य को भोग नीरस मालूम पड़ते हैं, उसी प्रकार उसको भी अपना राज्य पुत्र बिना दुःखमय प्रतीत होता था । अन्त में वह तप के द्वारा ही सिद्धियों को प्राप्त जानकर तपस्या करने के लिए वन को चला गया । उसकी स्त्री भी (हरिश्चन्द्र की पुत्री प्रमदा) वस्त्रालंकारों को त्यागकर अपने पति के साथ गन्धमादन पर्वत पर चली गयी । उस स्थान पर इन लोगों ने दस हजार वर्ष तक तपस्या की परन्तु सिद्धि प्राप्त न हो सकी । राजा के शरीर में केवल हड्डियाँ रह गयीं । यह देखकर प्रमदा ने विनयसहित महासती अनसूया से पूछा: मेरे पतिदेव को तपस्या करते हुए दस हजार वर्ष बीत गये, परन्तु अभी तक भगवान प्रसन्न नहीं हुए हैं, जिससे मुझे पुत्र प्राप्त हो । इसका क्या कारण है?

इस पर अनसूया बोली कि अधिक (लौंद/मल ) मास में जो कि छत्तीस महीने बाद आता है, उसमें दो एकादशी होती है । इसमें शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘पद्मिनी’ और कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘परमा’ है । उसके व्रत और जागरण करने से भगवान तुम्हें अवश्य ही पुत्र देंगे ।

इसके पश्चात् अनसूयाजी ने व्रत की विधि बतलायी । रानी ने अनसूया की बतलायी विधि के अनुसार एकादशी का व्रत और रात्रि में जागरण किया । इससे भगवान विष्णु उस पर बहुत प्रसन्न हुए और वरदान माँगने के लिए कहा ।

रानी ने कहा : आप यह वरदान मेरे पति को दीजिये ।

प्रमदा का वचन सुनकर भगवान विष्णु बोले : ‘हे प्रमदे ! मल मास (लौंद) मुझे बहुत प्रिय है । उसमें भी एकादशी तिथि मुझे सबसे अधिक प्रिय है । इस एकादशी का व्रत तथा रात्रि जागरण तुमने विधिपूर्वक किया, इसलिए मैं तुम पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ ।’ इतना कहकर भगवान विष्णु राजा से बोले: ‘हे राजेन्द्र ! तुम अपनी इच्छा के अनुसार वर माँगो । क्योंकि तुम्हारी स्त्री ने मुझको प्रसन्न किया है ।’

भगवान की मधुर वाणी सुनकर राजा बोला : ‘हे भगवन् ! आप मुझे सबसे श्रेष्ठ, सबके द्वारा पूजित तथा आपके अतिरिक्त देव दानव, मनुष्य आदि से अजेय उत्तम पुत्र दीजिये ।’ भगवान तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गये । उसके बाद वे दोनों अपने राज्य को वापस आ गये । उन्हींके यहाँ कार्तवीर्य उत्पन्न हुए थे । वे भगवान के अतिरिक्त सबसे अजेय थे । इन्होंने रावण को जीत लिया था । यह सब ‘पद्मिनी’ के व्रत का प्रभाव था । इतना कहकर पुलस्त्यजी वहाँ से चले गये ।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : हे पाण्डुनन्दन अर्जुन ! यह मैंने अधिक (लौंद/मल/पुरुषोत्तम) मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत कहा है । जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह विष्णुलोक को जाता है ।
Indira Ekadashi


Yudhishthir asked : "Hey Madhusudan, please tell me which is the ekadashi of Ashwin Krishna Paksh?"

Lord Krishna said:"Hey king the ekadashi of Ashwin Krishna Paksh, is known as Indira Ekadashi.With its effect, huge sins are

destroyed.Even the ancestors who are now in the low births, they are delievered by this fast."

"King, in ancient times ,there was a famous prince named Indrasen, who became the king of Mahishmatipur and he took care of his people

with dharma.He was very famous."

"King Indrasen used to japa of Lord Vishnu's pious names and used to be busy in meditatation all the time.Once upon a time he was

sitting in his court,and sage Naarad appeared in front of him. Seeing the great sage, king greeted sage Naarad, and made him sit on the Aasana.

and said," Hey great Saint, with your grace, I am fine and with your darshan,I am honoured, so please let me know the cause of your kind visit."

"Sage Naarad said, Hey king listen, my story will surprise you.I went to yamaloka,

{a world ,realm of the God of death} from Brahmaloka{a world, realm of Brahmaji, the creator}. There yamadeva{God of death} made me sit on a great

Aasana and worshiped me.There I saw your father too.He had to come there because of the sin of breaching, or breaking a fast. Hey king your father has

sent me a message for you. he said, "Son do keep the fast of Indira Ekadashi and send or dedicate that good karma to me and send me to heaven."

Hey king I have came here with this message of your father.Do keep the fast of Indira Ekadashi for your father."

"King asked" hey sage, please let me know how this fast is done, when does it come, on which fortnight and on what date, please let me know."

Narad ji said " Hey king of kings ,listen,let me tell you the process of this fast. On Ashwin Krishna Paksh, Dashmi, that is the 10th day,

take a bath in the early morning and have a meal in the noon time, and sleep on the earth in the night.In the early morning of Ekadashi, take a shower and

brush your teeth and recite this mantra...:


अघ स्थित्वा निराहारः सर्वभोगविवर्जितः ।

श्वो भोक्ष्ये पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत ॥

Agha sthitya nirahaaraha sarvabhogavivarjitaha.

Shvo Bhokshaye pundarikaaksha sharanam mey bhavaachyuta.

" Hey kamalanayan {having eyes like lotus}, Lord Naarayan.I surrender to you, and will not have any meal today and will eat tommorow."{

"Hence in the afternoon time,do the Shraadha of your ancestors in front of Shaaligram, ang give alms to the brahmins and offer them food.

Smell the dough meant for the ancestors and offer it to the cows.Do the jaagran in the night and worship Lord Rishikesh,with incense . Then in the morning on the Dwaadashi,

again worship Lord Shri Hari and offer food to the brahmins and afterwords have a meal along with your family members, but silently,unvoiced."


"Hence keep this fast with this process, and your ancestors will attain Vaikuntha."

Lord Krishna says that "saying this sage Naarada dissapeared and king Indrasen kept this fast along ewith his queens, princes and brothers."

"Hey Kuntinandan{son of kunti}, when the fast was done, the rain of the flowers fell from the sky.Father of the king Indrasen went to Vaikuntha sitting on Garuda,

and Indrasena after ruling his kingdom througout his lifetime went to heaven afdter his life.Hence I have told you the glory of Indira Ekadashi. All sins of a person are destroyed by

by reading and hearing this holy tale."

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एकादशी की रात्रि में श्रीहरि के समीप जागरण का माहात्मय

सब धर्मों के ज्ञाता, वेद और शास्त्रों के अर्थज्ञान में पारंगत, सबके हृदय में रमण करनेवाले श्रीविष्णु के तत्त्व को जाननेवाले तथा भगवत्परायण प्रह्लादजी जब सुखपूर्वक बैठे हुए थे, उस समय उनके समीप स्वधर्म का पालन करनेवाले महर्षि कुछ पूछने के लिए आये ।

महर्षियों ने कहा : प्रह्रादजी ! आप कोई ऐसा साधन बताइये, जिससे ज्ञान, ध्यान और इन्द्रियनिग्रह के बिना ही अनायास भगवान विष्णु का परम पद प्राप्त हो जाता है । उनके ऐसा कहने पर संपूर्ण लोकों के हित के लिए उद्यत रहनेवाले विष्णुभक्त महाभाग प्रह्रादजी ने संक्षेप में इस प्रकार कहा : महर्षियों ! जो अठारह पुराणों का सार से भी सारतर तत्त्व है, जिसे कार्तिकेयजी के पूछने पर भगवान शंकर ने उन्हें बताया था, उसका वर्णन करता हूँ, सुनिये ।

महादेवजी कार्तिकेय से बोले : जो कलि में एकादशी की रात में जागरण करते समय वैष्णव शास्त्र का पाठ करता है, उसके कोटि जन्मों के किये हुए चार प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं । जो एकादशी के दिन वैष्णव शास्त्र का उपदेश करता है, उसे मेरा भक्त जानना चाहिए ।

जिसे एकादशी के जागरण में निद्रा नहीं आती तथा जो उत्साहपूर्वक नाचता और गाता है, वह मेरा विशेष भक्त है । मैं उसे उत्तम ज्ञान देता हूँ और भगवान विष्णु मोक्ष प्रदान करते हैं । अत: मेरे भक्त को विशेष रुप से जागरण करना चाहिए । जो भगवान विष्णु से वैर करते हैं, उन्हें पाखण्डी जानना चाहिए । जो एकादशी को जागरण करते और गाते हैं, उन्हें आधे निमेष में अग्निष्टोम तथा अतिरात्र यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है । जो रात्रि जागरण में बारंबार भगवान विष्णु के मुखारविंद का दर्शन करते हैं, उनको भी वही फल प्राप्त होता है । जो मानव द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के आगे जागरण करते हैं, वे यमराज के पाश से मुक्त हो जाते हैं । जो द्वादशी को जागरण करते समय गीता शास्त्र से मनोविनोद करते हैं, वे भी यमराज के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं । जो प्राणत्याग हो जाने पर भी द्वादशी का जागरण नहीं छोड़ते, वे धन्य और पुण्यात्मा हैं । जिनके वंश के लोग एकादशी की रात में जागरण करते हैं, वे ही धन्य हैं । जिन्होंने एकादशी को जागरण किया हैं, उन्होंने यज्ञ, दान , गयाश्राद्ध और नित्य प्रयागस्नान कर लिया । उन्हें संन्यासियों का पुण्य भी मिल गया और उनके द्वारा इष्टापूर्त कर्मों का भी भलीभाँति पालन हो गया । षडानन ! भगवान विष्णु के भक्त जागरणसहित एकादशी व्रत करते हैं, इसलिए वे मुझे सदा ही विशेष प्रिय हैं । जिसने वर्द्धिनी एकादशी की रात में जागरण किया है, उसने पुन: प्राप्त होनेवाले शरीर को स्वयं ही भस्म कर दिया । जिसने त्रिस्पृशा एकादशी को रात में जागरण किया है, वह भगवान विष्णु के स्वरुप में लीन हो जाता है । जिसने हरिबोधिनी एकादशी की रात में जागरण किया है, उसके स्थूल सूक्ष्म सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । जो द्वादशी की रात में जागरण तथा ताल स्वर के साथ संगीत का आयोजन करता है, उसे महान पुण्य की प्राप्ति होती है । जो एकादशी के दिन ॠषियों द्वारा बनाये हुए दिव्य स्तोत्रों से, ॠग्वेद , यजुर्वेद तथा सामवेद के वैष्णव मन्त्रों से, संस्कृत और प्राकृत के अन्य स्तोत्रों से व गीत वाद्य आदि के द्वारा भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करता है उसे भगवान विष्णु भी परमानन्द प्रदान करते हैं ।

य: पुन: पठते रात्रौ गातां नामसहस्रकम् ।

द्वादश्यां पुरतो विष्णोर्वैष्णवानां समापत: ।

स गच्छेत्परम स्थान यत्र नारायण: त्वयम् ।

जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है, वह उस परम धाम में जाता है, जहाँ साक्षात् भगवान नारायण विराजमान हैं ।

पुण्यमय भागवत तथा स्कन्दपुराण भगवान विष्णु को प्रिय हैं । मथुरा और व्रज में भगवान विष्णु के बालचरित्र का जो वर्णन किया गया है, उसे जो एकादशी की रात में भगवान केशव का पूजन करके पढ़ता है, उसका पुण्य कितना है, यह मैं भी नहीं जानता । कदाचित् भगवान विष्णु जानते हों । बेटा ! भगवान के समीप गीत, नृत्य तथा स्तोत्रपाठ आदि से जो फल होता है, वही कलि में श्रीहरि के समीप जागरण करते समय ‘विष्णुसहस्रनाम, गीता तथा श्रीमद्भागवत’ का पाठ करने से सहस्र गुना होकर मिलता है । जो श्रीहरि के समीप जागरण करते समय रात में दीपक जलाता है, उसका पुण्य सौ कल्पों में भी नष्ट नहीं होता । जो जागरणकाल में मंजरीसहित तुलसीदल से भक्तिपूर्वक श्रीहरि का पूजन करता है, उसका पुन: इस संसार में जन्म नहीं होता । स्नान, चन्दन , लेप, धूप, दीप, नैवेघ और ताम्बूल यह सब जागरणकाल में भगवान को समर्पित किया जाय तो उससे अक्षय पुण्य होता है । कार्तिकेय ! जो भक्त मेरा ध्यान करना चाहता है, वह एकादशी की रात्रि में श्रीहरि के समीप भक्तिपूर्वक जागरण करे । एकादशी के दिन जो लोग जागरण करते हैं उनके शरीर में इन्द्र आदि देवता आकर स्थित होते हैं । जो जागरणकाल में महाभारत का पाठ करते हैं, वे उस परम धाम में जाते हैं जहाँ संन्यासी महात्मा जाया करते हैं । जो उस समय श्रीरामचन्द्रजी का चरित्र, दशकण्ठ वध पढ़ते हैं वे योगवेत्ताओं की गति को प्राप्त होते हैं ।

जिन्होंने श्रीहरि के समीप जागरण किया है, उन्होंने चारों वेदों का स्वाध्याय, देवताओं का पूजन, यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब तीर्थों में स्नान कर लिया । श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई देवता नहीं है और एकादशी व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है । जहाँ भागवत शास्त्र है, भगवान विष्णु के लिए जहाँ जागरण किया जाता है और जहाँ शालग्राम शिला स्थित होती है, वहाँ साक्षात् भगवान विष्णु उपस्थित होते हैं ।

एकादशी व्रत विधि

दशमी की रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा भोग विलास से भी दूर रहें । प्रात: एकादशी को लकड़ी का दातुन तथा पेस्ट का उपयोग न करें; नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ शुद्ध कर लें । वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है, अत: स्वयं गिरे हुए पत्ते का सेवन करे । यदि यह सम्भव न हो तो पानी से बारह कुल्ले कर लें । फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितादि से श्रवण करें । प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि: ‘आज मैं चोर, पाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करुँगा और न ही किसीका दिल दुखाऊँगा । गौ, ब्राह्मण आदि को फलाहार व अन्नादि देकर प्रसन्न करुँगा । रात्रि को जागरण कर कीर्तन करुँगा , ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश अक्षर मंत्र अथवा गुरुमंत्र का जाप करुँगा, राम, कृष्ण , नारायण इत्यादि विष्णुसहस्रनाम को कण्ठ का भूषण बनाऊँगा ।’ - ऐसी प्रतिज्ञा करके श्रीविष्णु भगवान का स्मरण कर प्रार्थना करें कि : ‘हे त्रिलोकपति ! मेरी लाज आपके हाथ है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें ।’ मौन, जप, शास्त्र पठन , कीर्तन, रात्रि जागरण एकादशी व्रत में विशेष लाभ पँहुचाते हैं।

एकादशी के दिन अशुद्ध द्रव्य से बने पेय न पीयें । कोल्ड ड्रिंक्स, एसिड आदि डाले हुए फलों के डिब्बाबंद रस को न पीयें । दो बार भोजन न करें । आइसक्रीम व तली हुई चीजें न खायें । फल अथवा घर में निकाला हुआ फल का रस अथवा थोड़े दूध या जल पर रहना विशेष लाभदायक है । व्रत के (दशमी, एकादशी और द्वादशी) -इन तीन दिनों में काँसे के बर्तन, मांस, प्याज, लहसुन, मसूर, उड़द, चने, कोदो (एक प्रकार का धान), शाक, शहद, तेल और अत्यम्बुपान (अधिक जल का सेवन) - इनका सेवन न करें । व्रत के पहले दिन (दशमी को) और दूसरे दिन (द्वादशी को) हविष्यान्न (जौ, गेहूँ, मूँग, सेंधा नमक, कालीमिर्च, शर्करा और गोघृत आदि) का एक बार भोजन करें।

फलाहारी को गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग इत्यादि सेवन नहीं करना चाहिए । आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए ।

जुआ, निद्रा, पान, परायी निन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, मैथुन, क्रोध तथा झूठ, कपटादि अन्य कुकर्मों से नितान्त दूर रहना चाहिए । बैल की पीठ पर सवारी न करें ।


भूलवश किसी निन्दक से बात हो जाय तो इस दोष को दूर करने के लिए भगवान सूर्य के दर्शन तथा धूप दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा माँग लेनी चाहिए । एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगायें, इससे चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है । इस दिन बाल नहीं कटायें । मधुर बोलें, अधिक न बोलें, अधिक बोलने से न बोलने योग्य वचन भी निकल जाते हैं । सत्य भाषण करना चाहिए । इस दिन यथाशक्ति अन्नदान करें किन्तु स्वयं किसीका दिया हुआ अन्न कदापि ग्रहण न करें । प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करनी चाहिए ।

एकादशी के दिन किसी सम्बन्धी की मृत्यु हो जाय तो उस दिन व्रत रखकर उसका फल संकल्प करके मृतक को देना चाहिए और श्रीगंगाजी में पुष्प (अस्थि) प्रवाहित करने पर भी एकादशी व्रत रखकर व्रत फल प्राणी के निमित्त दे देना चाहिए । प्राणिमात्र को अन्तर्यामी का अवतार समझकर किसीसे छल कपट नहीं करना चाहिए । अपना अपमान करने या कटु वचन बोलनेवाले पर भूलकर भी क्रोध नहीं करें । सन्तोष का फल सर्वदा मधुर होता है । मन में दया रखनी चाहिए । इस विधि से व्रत करनेवाला उत्तम फल को प्राप्त करता है । द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्टान्न, दक्षिणादि से प्रसन्न कर उनकी परिक्रमा कर लेनी चाहिए ।

व्रत खोलने की विधि :

द्वादशी को सेवापूजा की जगह पर बैठकर भुने हुए सात चनों के चौदह टुकड़े करके अपने सिर के पीछे फेंकना चाहिए । ‘मेरे सात जन्मों के शारीरिक, वाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए’ - यह भावना करके सात अंजलि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलना चाहिए ।